भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

जरा व्याध / अज्ञेय

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

मैं पाप नहीं लाया ढो कर
वन से बाहर
भी पग-पग पर
खाता ठोकर
मैं प्रश्न-भरा अकुलाया
बस-आप आया।
साथ में-अर्थ लाया
अव्यर्थ अर्थ की परतें।
मैं-जरा व्याध-
मार नारायण को ले आया
वैश्वानर नर!
निर्जर...
मैं पुण्य-भ्रष्ट हो कर
भी पाप नहीं लाया ढो कर...

हाइडेलबर्ग, 1976