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जलियांवाला / महावीर प्रसाद ‘मधुप’

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आया तेरह अपै्रल दिवस फिर लेकर सुधियों की माला।
था देशवासियों को जिस दिन जल्लाद बना जलियांवाला॥
अमृतसर की उस धरती को था कंपित किया तबाही ने।
अत्याचारों का नृत्य किया जब खुल कर तानाशाही ने॥

रो उठीं बाग की दीवारें हर दिशा ख़ौफ़ से डोली थी।
ज़ालिम डायर ने जब खेली ख़ूँखार ख़ून की होली थी।
गुमनाम शहीदों की गणना ख़ुद मौत न कर पाई होगी।
निष्ठुरता भी चीखी होगी, निर्ममता चिल्लाई होगी॥

कितनी ही कोमल कलियों ने, बच्चों ने वृद्ध जवानों ने।
बलिवेदी को रँग डाला था आज़ादी के परवानों ने॥
भारत माता के जो सपूत दुख झेल गए बर्बादी का।
उनके शोणित से लिखा गया इतिहास नया आज़ादी का॥

आतंक, दमन, उत्पीड़न का जब चक्र चलाया जाता है।
निर्दोष मनुजता का जी भर जब रक्त बहाया जाता है॥
इतिहास गवाही देता है चलती न सदा मनमानी है।
परिवर्तन आकर ही रहता, रंग लाती हर कुर्बानी है॥

कितनी भी रात अंधेरी हो सूरज न कभी रुक पाता है।
पतझर भी आकर उपवन को नूतन वसन्त दे जाता है॥
गुलज़ार हुआ जिनके दम से गुलशन अपनी उम्मीदों का।
श्रद्धा सुमनों से बार-बार वन्दन उन अमर शहीदों का॥