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जहान से बाहर / केदारनाथ अग्रवाल

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जहान से बाहर
        अजान में जा रहा आदमी

कहीं से कहीं — 
न कहीं कुछ होने के लिए,

अपने को गुमराह किए — 
दूसरों को तबाह किए — !

10 अक्तूबर 1980