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ज़िंदगी ने रोज़ मारा है मुझे / धर्वेन्द्र सिंह बेदार

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ज़िंदगी ने रोज़ मारा है मुझे
मौत अब तेरा सहारा है मुझे

इक सदा पर मैं चला आता मगर
मौत तूने कब पुकारा है मुझे

ज़िंदगी तू अब मयस्सर हो भले
अब नहीं जीना गवारा है मुझे

दोस्तो हालात ने बेहद कड़े
इम्तिहानों से गुज़ारा है मुझे

इश्क़ अब शबनम नहीं मेरे लिए
इश्क़ अब लगता शरारा है मुझे