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ज़िक्र मेरा है आसमान में क्या / सईद अहमद

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ज़िक्र मेरा है आसमान में क्या
आ गया हूँ मैं उस के ध्यान में क्या

सब करिश्मे तअल्लुक़ात के हैं
ख़ाक उड़ती है ख़ाक-दान में क्या

चाँद तारे उतर नहीं सकते
रात की रात इस मकान में क्या

फिर चली बाद-ए-साज़गार मगर
कुछ रहा भी है बादबान में क्या

ज़िंदा है इक क़बीला-ए-क़ाबील
मैं रहूँ ऐसे ख़ानदान में क्या