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जिन्दगी के बहुत रंग देखली / रामेश्वर प्रसाद

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जिन्दगी के बहुत रंग देखली; सखे !
राज पर वइठ के राज जनल∙ न तू।
कुछ नरम, कुछ गरम, कुछ तरल, कुछ भरल,
प्यार में प्यार के हार मनल∙ न तू।।

तू त पढ़ल∙ आ बढ़ल∙ अहम्-पंथ पर,
पर जमाना ए जिनगी से दुस्तर बहुत।
आज हर जानवर प्राण में बस रहल,
आदमी में छिपल ताज जनल∙ न तू।।

खोज लेलक मनुज नाश के हर दिशा,
डाल लेलक बहक बोध पर खुद निशा।
प्यार के बांसुरी क्रोध-कर में फँसल,
प्यार पर प्राण के दान तनल∙ न तू।।

प्राण के हर प्रलय में प्रणय खो चुकल,
प्यार पर प्यार के घन न विंहसल-झुकल।
प्यार में हँस रहल हर मनुज के जनम,
आज तक प्यार के जान सकल∙ न तू।।