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जिसको लज़्ज़त है सुख़न के दीद की / वली दक्कनी

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जिसको लज़्ज़त है सुख़न के दीद की
उसको ख़ुशवक़्ती है रोज़-ए-ईद की

दिल मिरा मोती हो, तुझ बाली में जा
कान में कहता है बाताँ भेद की

ज़ुल्‍फ़ नईं तुझ मुख पे ऐ दरिया-ए-हुस्‍न
मौज है ये चश्‍म-ए-ख़ुर्शीद की

उसके ख़त-ओ-ख़ाल सूँ पूछो ख़बर
बूझता हिंदू है बाताँ बेद की

तुझ दहन कूँ देख कर बोला 'वली'
ये कली है गुलशन-ए-उम्‍मीद की