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जिस पर हमें था नाज़ वह फ़न ले लिया गया / जावेद क़मर

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जिस पर हमें था नाज़ वह फ़न ले लिया गया।
हम से हमारा तर्ज़-ए-सुख़न ले लिया गया।

अब तो उङाते फिरते हैं सहरा की ख़ाक हम।
हम को फ़रेब दे के चमन ले लिया गया।

ज़िन्दा था जब तो भूक के उस पर सितम हुए।
मरने के बाद उस से कफ़न ले लिया गया।

दुनिया हमें पढ़ाती है नफ़रत का अब सबक़।
उल्फत हम से तर्ज़-ए-कुहन ले लिया गया।

इस वक़्त बेक़रार नज़र आती है बहुत।
धरती से जैसे उस का गगन ले लिया गया।

रोते हैं याद कर के वतन को बहुत वह लोग।
ताक़त के बल पर जिन से वतन ले लिया गया।

ईसार और वफ़ा का चलन अब कहाँ 'क़मर' ।
ईसार और वफ़ा का चलन ले लिया गया।