भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

जिस सिम्त नज़र जाए, वो मुझको नज़र आए / शतदल

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

जिस सिम्त नज़र जाए, वो मुझको नज़र आए ।
हसरत है कि अब यूँ ही, ये उम्र गुज़र जाए ।

आसार हैं बारिश के, तूफाँ का अंदेशा है
मौसम का तकाज़ा है, अब कोई न घर जाए ।

तामीरों-तरक्की का, ये दौर तो है लेकिन,
ये सोच के डरता हूँ, एहसास न मर जाए ।

हो जिसका जो हक ले-ले, गुलशन में बहारों से
ये मौसमे-गुल यारों, कल जाने किधर जाए ?