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जीने-मरने की! / बुद्धिनाथ मिश्र

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जकरा तन सोनित क लैस नहि
तकरा जीने-मरने की!

ओकरे बात सुनै अछि पंचो
जकरा हाथ गड़ाँस
नीक सदा लगलैए सभ कें
निम्मल देह क माँस

जपे करैत भेल पाथर जे
तकर आसनी जरने की!

पिता छला वाचस्पति
बेटा बौक बनल अपने कर्मे
धधरा तापि सकब कतबा दिन
बैसि अहाँ लाह क घर मे

धाङत खेत साँढ़ सब,चेतू
पाछाँ बाध ओगरने की!

पक्का पीटि रहल अछि सभ क्यो
बजा-बजा कें गाल
भाङ पीबि दू धूर क डीहे
पर की रहब नेहाल?

जागू, काज करू किछु, बैसल
हाथ माथ पर धरने की!