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जी भर गाओ / बुद्धिनाथ मिश्र

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मुझ पर प्यारे शोध करो मत
मुझको जी भर गाओ ।

चीर-फाड़ कविता के तन की
अच्छी बात नहीं
ख़ून-पसीने की फ़सलें
मिलतीं ख़ैरात नहीं
मुझको माला पहनाओ मत
मुझको जी भर गाओ ।

रोकर गाती है जैसे
बुधनी बकरी मरने पर
रोकर गाओ, हँसकर गाओ
तुम भी जी करने पर
मेरी बातें याद करो मत
मुझको जी भर गाओ ।

दो दिन या दो सदी जिएँगे
ये कविवर, क्या जानें
हमें जिलाएँगी आकाश-
कुसुम-सी ये सन्तानें
ज्यादा मेरा नाम रटो मत
मुझको जी भर गाओ ।