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जुज़ तेरे कोई भी दिन-रात न जाने मेरे / फ़राज़

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जुज़<ref>सिवाय</ref>तेरे कोई भी दिन रात न जाने मेरे
तू कहाँ है मगर ऐ दोस्त पुराने मेरे

तू भी ख़ुश्बू है मगर मेरा तजस्सुस<ref>तलाश</ref>बेकार
बर्गे -आवारा<ref> आवारा पत्ता</ref>की मानिंद<ref>तरह</ref>ठिकाने मेरे

शम्अ की लौ थी कि वो तू था मगर हिज्र<ref>विरह</ref>की रात
देर तक रोता रहा कोई सरहाने मेरे

ख़ल्क़<ref>दुनिया के लोग</ref>की बेख़बरी है कि मिरी रुस्वाई<ref>बदनामी</ref>
लोग मुझको ही सुनाते हैं फ़साने मेरे

लुट के भी ख़ुश हूँ कि अश्कों से भरा है दामन
देख ग़ारतगरे-दिल<ref>दिल लूटने वाला</ref>ये भी ख़ज़ाने मेरे

आज इक और बरस बीत गया उसके बग़ैर
जिस के होते हुए होते थे ज़माने मेरे


         -क़ित्अ-

काश तू भी मेरी आवाज़ कहीं सुनता हो
फिर पुकारा है तुझे दिल की सदा ने मेरे

काश तू भी कभी आ जाए मसीहाई<ref>उपचार</ref>को
लोग आते हैं बहुत दिल को दुखाने मेरे

काश औरों की तरह मैं भी कभी कह सकता
बत सुन ली है मेरी आज ख़ुदा ने मेरे

तू है किस हाल में ऐ जूद-फ़रामोश<ref>जल्द भूलने वाले</ref>मिरे
मुझको तो छीन लिया अहदे-वफ़ा<ref>वफ़ा का वादा, भक्ति का प्रण</ref>ने मेरे

चारागर<ref>उपचार करने वाले</ref>यूँ तो बहुत हैं मगर ऐ जाने-‘फ़राज़’<ref>`फराज़' के प्राण</ref>
जुज़ तेरे और कोई ज़ख़्म न जाने मेरे

शब्दार्थ
<references/>