भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

जैसे बाज़ परिन्दों में / विज्ञान व्रत

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

जैसे बाज़ परिन्दों में
मेरा क़ातिल अपनों में

अब इंसानी रिश्ते हैं
सिर्फ़ कहानी-किस्सों में

पढ़ना-लिखना सीखा तो
अब हूँ बंद क़िताबों में

मौसम को महसूस करूँ
ख़बरों से अख़बारों में

मेरे पैर ज़मीं पर हैं
ख़ुद हूँ चांद-सितारों में!