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जो तू नहीं तो मौसम-ए-मलाल भी न आएगा / याक़ूब यावर

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जो तू नहीं तो मौसम-ए-मलाल भी न आएगा
गए दिनों के बाद अहद-ए-हाल भी न आएगा

मिरी सुखन-सराइयों का ए’तिबार तो नहीं
जो तू नहीं तो हिज्र का सवाल भी न आएगा

अगर वो आज रात हदद-ए-इल्तिफात तोड़ दे
कभी फिर उस से प्यार का खयाल भी न आएगा

शब-ए-तिसाल है बिसात-ए-हिज ही उलट गई
तो फिर कभी खयाल-ए-माह-ओ-साल भी न आएगा

मिलेगा क्या तिलिस्म-ए-जात का हिसार तोड़ कर
कि इस के बाद शहर-ए-बे-मिसाल भी न आएगा