भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

जो सुदामा को भी लगाये हिय, मुझे उस किशन से ही काम है / राजेन्द्र वर्मा

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

जो सुदामा को भी लगाये हिय, मुझे उस किशन से ही काम है ।
वो जो रक्तपात सिखा रहा, उसे दूर से ही प्रणाम है ।

ये जो धर्म-वाली अफ़ीम है, सारी दुनिया जिसकी ग़ुलाम है,
वही बाँटने में लगी हमें, नहीं उस पे कोई लगाम है ।

ये जो पण्डे-मौलवी लड़ रहे, इन्हें आदमी से है क्या ग़रज़,
इन्हें हिन्दुओं से ही काम है, उन्हें मुस्लिमों से ही काम है !

जो पसीना श्रम से बहा रहा, उसे कोई भी नहीं पूछता,
वो जो बैठा बातें बना रहा, वो ही आदमी सरनाम है ।

जो गुलों के रंग निचोड़कर, करे काग़ज़ी गुल सुर्ख़रू,
वो ही अक्लमंद बना हुआ, वो ही आजकल का निज़ाम है ।

तुम्हें ऐसे लोगों से काम है, जिन्हें चट लगी हुई मुफ़्त की,
हमें ऐसे लोगों से काम है, जिन्हें माले-मुफ़्त हराम है ।

मेरे सिर को कर दे भले क़लम, मेरा हौसिला नहीं होगा कम,
तुझे ग़ौर करना पड़ेगा ही, ये कलाम सबका कलाम है ।

है ये दुनिया एक पहेली-सी, यहाँ कौन किसका, पता नहीं,
मैं जिसे हृदय में बिठाये था, वो भी अन्ततः मेरे वाम है ।

मुझे चाहिए थी जो रौशनी, वो ही रौशनी मुझे मिल गयी,
मुझे अब तो हैं दोनों एक-सी, जो भी सुब्ह है, वही शाम है ।