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जौँ लौँ कोऊ पारखी सोँ होन नहिँ पाई भेँट / ठाकुर

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जौँ लौँ कोऊ पारखी सोँ होन नहिँ पाई भेँट

तब ही लौँ तनक गरीब सोँ सरीरा हैँ ।
पारखी सोँ भेँट होत मोल बढ़ै लाखन को

गुनन के आगर सुबुद्धि गँभीरा हैँ ।
ठाकुर कहत नहिँ निन्दो गुनवारन को

देखिबो को दीन ये सपूत सूरबीरा हैँ ।
ईश्वर के आनस तेँ होत ऎसे मानस

जे मानस सहूरवारे धूर भरे हीरा हैँ ॥


ठाकुर का यह दुर्लभ छन्द श्री राजुल महरोत्रा के संग्रह से उपलब्ध हुआ है।