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ज्ञान सँजो अब / प्रेमलता त्रिपाठी

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भक्ति सुधा मन प्राण डुबो अब ।
संत समागम ज्ञान सँजो अब ।

क्षुब्ध अजान असत्य पथी बन,
व्यर्थ अकारथ आयु न हो अब ।

उच्च मनोबल सत्य सुसाधक,
सेवक धर्म सुजान करो अब ।

द्वेष न राग न प्रीति वियोगन,
पंथ सही न विरुद्ध धरो अब ।

प्रेम विना न कहीं जन जीवन,
रीति कुरीति विचार बढो़ अब ।