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झिलमिल साँझ सकारे देखो / मृदुला झा

Kavita Kosh से
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आँगन और चैबारे देखो।

मिल-जुल बिहरें संग-संग गायें,
मंदिर और गुरुद्वारे देखो।

शिकवा है न शिकायत कोई,
जीवन के मिन्सारे देखो।

जन्म-मरण तो सबने देखा,
नाव चली मजधारे देखो।

आपा-धापी में दिन बीते
छूटे सब लश्कारे देखो।