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झुंझलाई लडकी के सवाल / शलभ श्रीराम सिंह

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पता नहीं
कब तक सहना पड़ेगा
मूर्खता का दुःख?
सरलता का संकट
झेलना पड़ेगा कब तक?
कब तक सहेजना पड़ेगा
सहजता का जंजाल...?

पता नहीं
कब तक बनाते रहेंगे लोग मूर्ख?
सुननी पड़ेगी कब तक
हर किसी की ऊल-जुलूल बात?
कब तक उलझा रहेगा
शब्दों के उलट-फेर में
जीवन?
कब तक चलता रहेगा यह सब
यों ही?
पता नहीं। पता नहीं।। पता नहीं।।।


रचनाकाल : 1992 मसोढ़ा