भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

टूट्या के बाद बधावा / 1 / राजस्थानी

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

पोलीड़ा पोल उघाड़ जी, म्हे तो बरस बधावो ले घर आइयो।
म्हे तो जास्यां भंवरजी री सेज जी, म्हे तो देखां भंवर साईना।
जाताई जलमेली धीव जी, म्हारे नहीं रे भरोसी म्हारी कूख रो।
बारा मूं आवेली रे बरात, पातर आवे नाचती।
घर सूनो आंगन सूनो, सूनो है चंदन चौक जी, मैं तो धीय परणाय मेली सासरे।
पोलीड़ा पोल उघाड़ म्हे तो आनन्द बधावो ले घर आविया।
म्हे तो जास्यां भंवर जी री सेज, जी म्हे तो देखां भंवर साइबाजी।
म्हारे जाताई जलमेता पूत जो म्हारे घणो रे भरोसो म्हारी कूखरो।
घर सूं जावेला बराती जी म्हारे पातर जावे नाचती।
म्हारो घर भरियो आंगण भरियो, म्हारे भरियो है।
चांदन चौक जी म्हे तेा पूत परणाय ल्याया कुल बहू।