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टूट गया रिश्ता अपने से / राजेन्द्र गौतम

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वन में फूले अमलतास हैं
घर में नागफनी ।

हम निर्गंध पत्र-पुष्पों को
दे सम्मान रहे
पाटल के जीवन्त परस से
पर अनजान रहे

सुधा कलश लुढ़का कर मरु में
करते आगजनी ।

तन मन धन से रहे पूजते
सत्ता, सिंहासन
हर भावुक सन्दर्भ यहाँ पर
ढोता निर्वासन

राजद्वार तक जो पहुँचा दे
वह ही राह चुनी ।

टूट गया रिश्ता अपने से
इतने सभ्य हुए
औरों को क्या दे पाते, कब-
ख़ुद को लभ्य हुए

दृष्टि रही जो अमृत-वर्षिणी
जलता दाह बनी ।