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ठोकर जरा लगी हमें क्या हार मान लें / गिरधारी सिंह गहलोत

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ठोकर जरा लगी हमें क्या हार मान लें।
मंजिल की रहगुजर में क्यूँ दीवार मान लें।

जब तक ज़मीन और फलक है वज़ूद में
क्यों बेवज़ह ही ख़त्म ये संसार मान लें।

इंसानियत का जो भी उठाये रखे अलम
हम आज ही उसे नया अवतार मान लें।

जितना किया है ग़म ने परेशान आपको
उतना ख़ुशी से आप सरोकार मान लें।

चक्कर लगा रहे हैं जो दौलत के इर्द गिर्द
उनको न आप अपना वफ़ादार मान लें।

बातें जो कर रहे हैं बड़ी सिर्फ इसलिए
क्यों हम उन्हें ही सबसे समझदार मान लें।

जो कर रहे हैं अम्न को दिनरात तार तार
आवाम के उन्हें क्यूँ मददगार मान लें।

अवसाद में घिरे कभी जल्दी से लें सलाह
ये है ग़लत कि ख़ुद को गुनहगार मान लें।

आवाज दिल की कर रहे गलती से अनसुनी
ख़ुद को 'तुरंत' आप खतावार मान लें।