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डायरी के फटे पन्नों में / मनीष मिश्र

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डायरी के फाड़ दिए गए पन्नों में भी
साँस ले रही होती हैं अधबनी कविताएँ
फड़फड़ाते हैं कई शब्द और उपमायें!
विस्मृत नहीं हो पाती सारी स्मृतियाँ
सूख नहीं पाते सारे जलाशय
शब्दों और प्रेम के बावजूद
बन नहीं पाती सारी कविताएँ!
डायरी के फटे पन्नों में
प्रतीक्षा करती है कविताएँ
संज्ञा की, प्रतीक की, विशेषण की नहीं
दख की उस ज़मीन की
जिस पर वो अक्सर पनपती हैं!