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डिगना नहीं सीखा / प्रेमलता त्रिपाठी

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सत्य के पथ से कभी डिगना नहीं सीखा।
झूठ पर हम ने कभी लड़ना नहीं सीखा।

ध्येय हमनें सत्य पर रहना बनाया जब,
राह पर बढ़ते रहें रुकना नहीं सीखा।

धारणा अपनी रही मिलकर चलेंगे हम,
टाल कर हर नीति को बढ़ना नहीं सीखा।

तोड़ सारे बंधनों को लौ जगायी है,
हैं धरा के दीप हम बुझना नहीं सीखा।

कौन जाने छूट जाये साथ अपना कब,
बाँटते सुख-दुख सदा बचना नहीं सीखा।

मन भिखारी क्यों बना है प्रेम के पथ पर,
द्वेष भावों से कभी जलना नहीं सीखा।