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ढिठाई / लक्ष्मीशंकर वाजपेयी

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वो एक मरियल-सा चींटा था
बल्कि चींटे का बच्चा था
तीन बार फेंका मैंने उसे दूर
उँगली से छिटककर
पर वह ढीठ चौथी बार भी
उसी रास्ते लौटकर बढ़ा मेरी ओर
और तब अचानक आया मुझे खयाल
हो सकता है, इसे पता हो
यही एकमात्र रास्ता अपने घर लौटने का
जहाँ प्रतीक्षा में बैठी हो उसकी
माँ!
और मैंने जाने दिया उसे बेरोक-टोक।