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ढुलमुल विश्वास नहीं देना / प्रेम नारायण 'पंकिल'

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प्रभु यों ही निकम्मा हूँ ढुलमुल विश्वास नहीं देना
पग तले बसेरा दो अपने कोई आकाश नहीं देना।

कर उसी दृष्टि का दान कि जो प्रभु छवि बिन कमी नहीं भरती
अपने स्वरूप की फसल उगा नयनों की भूमि परी परती।
प्रभु-पद-जल-बिना तृप्त हो जाये ऐसी प्यास नहीं देना-
पग तले बसेरा दो--------------------।।1।।

वासना रहे तो राम-प्रेम की, राम-प्रेम का आकर्षण।
अभिमान रहे तो राम-प्रेम का राम-प्रेम-मय हो सब क्षण।
भींगी न रहे जो सदा राम-रस से वह श्वाँस नहीं देना-
पग तले बसेरा दो ----------------।।2।।

मेरी कहानी पर ख्याल न कर, जोर माँगता हूँ माफी।
मत छोडो जग की भूल-भूलैया में मैं भटक चुका काफी।
अब इस जीवन में विषय-वासना का उल्लास नहीं देना-
पग तले बसेरा दो--------------------।।3।।

मैं बार-बार पग पड़ूँ नाथ जितने दिन और जिला देना।
बस यहीं कृपा करना उर में निज प्रेम-प्रसून खिला देना।
जब की प्रवंचना में फॅंसने का प्रभु अवकाश नहीं देना-
पग तले बसेरा दो--------------------।।4।।

हे नाथ प्रेरणा करो कृपण का हो सर्वस्व तुम्हें अर्पण।
हर कण-कण में प्रिय-दर्शन हो ऐसा कर दो शुचि दृग-दर्पण
प्रभु-प्रेम-विहीन विषय ‘पंकिल’ बस नर की लाश नहीं देना
पग तले बसेरा दो--------------------।।5।।