भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

तन, मन, धन वारे हैं / सूर्यकांत त्रिपाठी "निराला"

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

तन, मन, धन वारे हैं;
परम-रमण, पाप-शमन,
स्थावर-जंगम-जीवन;
उद्दीपन, सन्दीपन,
सुनयन रतनारे हैं।

उनके वर रहे अमर
स्वर्ग-धरा पर संचर,
अक्षर-अक्षर अक्षर,
असुर अमित मारे हैं।

दूर हुआ दुरित, दोष,
गूंज है विजय-घोष,
भक्तों के आशुतोष,
नभ-नभ के तारे हैं।