भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

तस्वीर की चौखट / रति सक्सेना

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

मैंने बहुत चाहा कि
तस्वीर
की चौखट में बैठ
एक ही मुद्रा में
जम कर
दीवारों से दोस्ती बनाऊँ

मैंने अपने को
अट्ठारहवी सदी की तस्वीर में
बैठा देना चाहा

मेरे केवल दो रंग और एक भंगिमा रह गई
मेरी जम्फर के फूलों पर
तितलियाँ तब भी नहीं थीं

अब मैं वक्त से काफी आगे निकल गई
इक्कीसवीं सदी की चौखट मे जा कर
जम गई
अचानक मेरे भीतर
इतने सारे रंग इतना उछाल मारने लगे कि
मेरा अपना ही रंग दब गया

दीवार से मेरी दोस्ती नहीं हो सकती
वे सिर्फ मेरे रास्ते को काटती हैं

तस्वीरों, इंतजार करो
शायद तुम्हारी चौखटें
मेरे कद से छोटी हैं।