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तहज़ीब यह नई है, इसको सलाम कहिए / द्विजेन्द्र 'द्विज'

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तहज़ीब यह नई है, इसको सलाम कहिए

‘रावण’ जो सामने हो, उसको भी ‘राम’ कहिए


जो वो दिखा रहे हैं , देखें नज़र से उनकी

रातों को दिन समझिए, सुबहों को शाम कहिए


जादूगरी में उनको , अब है कमाल हासिल

उनको ही ‘राम’ कहिए, उनको ही ‘श्याम’ कहिए


मौजूद जब नहीं वो ख़ुद को खुदा समझिए

मौजूदगी में उनकी , ख़ुद को ग़ुलाम कहिए


उनका नसीब वो था, सब फल उन्होंने खाए

अपना नसीब यह है, गुठली को आम कहिए


जिन—जिन जगहों पे कोई, लीला उन्होंने की है

उन सब जगहों को चेलो, गंगा का धाम कहिए


बेकार उलझनों से गर चाहते हो बचना

वो जो बताएँ उसको अपना मुक़ाम कहिए


इस दौरे—बेबसी में गर कामयाब हैं वो

क़ुदरत का ही करिश्मा या इंतज़ाम कहिए


दस्तूर का निभाना बंदिश है मयक़दे की

जो हैं गिलास ख़ाली उनको भी जाम कहिए


बदबू हो तेज़ फिर भी, कहिए उसे न बदबू

‘अब हो गया शायद, हमको ज़ुकाम’ कहिए


यह मुल्क का मुक़द्दर, ये आज की सियासत

मुल्लाओं में हुई है, मुर्ग़ी हराम कहिए


‘द्विज’ सद्र बज़्म के हैं, वो जो कहें सो बेहतर

बासी ग़ज़ल को उनकी ताज़ा क़लाम कहिए