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ताक़त में वो भारी है / डी. एम. मिश्र

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ताक़त में वो भारी है
जंग हमारी जारी है

जनहित की रक्षा करना
कवि की जिम्मेदारी है

जिस के भीतर मानवता
कवि उसका आभारी है

जाती नहीं ग़रीबी क्यों
यह कैसी बीमारी है

लेखन भी अब तो धंधा
लेखक भी व्यापारी है

जिस पर राजा खुश होता
वह कविता दरबारी है

बात उसूलों की वरना
दुश्मन से भी यारी हैं