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ताड़ काटूँ, तड़कुन काटूँ / मधुसूदन साहा

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ताड़ काटूँ तद्कूंब काटूँ
काटूँ रे खरबूजा।
इस धरती पर होता हरदम
सब कुछ बड़ा अजूबा॥

यहाँ कबूतर हरकारा बन
दूर-दूर तक जाता,
सरहद पर लड़ते सैनिक तक
गुप्त पत्र पहुँचाता,
तोता पढ़ता श्लोक यहाँ पर
मैना करती पूजा।
खटते हैं सब खूब यहाँ पर
तन से बहता पानी,
कभी नहीं थकती क्षणभर भी
इनकी चुस्त जवानी,
उगता सूरज लगता जैसे
कटा हुआ तरबूजा।
चंदन वन की हवा सिखाती
सेवा कि परिभाषा,
गुरुजन के आशीषों से ही
पूरी होती आशा,
मेवा से भी मीठा होता
अपने घर का भूजा।