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तानाशाह: कुछ कविताएँ / कौशल किशोर

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एक

वे कहते हैं
चुनो

ये हैं खुशियाँ
ये हैं गीत
ये हैं जिन्दगी

इनमें से तुम अपने लिये
कुछ भी चुन सकते हो

चुनने के लिये
जब भी मैं आगे बढता हूँ
मेरे हाथ क्यों लगती हैं
अपनी ही मजबूरियाँ
अपना ही डर
और उनका आतंक?

दो

चुनो, अपने लिए चुनो
ये हैं इस देश के तानाशाह

नहीं, तो इन्हें चुनो
ये हैं तानाशाहों के तानाशाह

इन्हें भी नहीं,
फिर तो देखो, परखो
और अपने लिए चुनो
ये है तानाशाहों की कतार

जो जितना बड़ा तानाशाह
वह उतना बड़ा धूर्त
जो जितना बड़ा धूर्त
वह उतना बड़ा तुम्हारा हितैषी

इस लोकतंत्र में इन्हें चुनने की
तुम्हें आजादी है

चुनो, अपने लिए चुनो।
 

तीन

हंसो
इसलिए कि
रो नहीं सकते इस देश में

हंसो
खिलखिला कर
अपनी पूरी शक्ति के साथ
इसलिए कि
तुम्हारे उदास होने से
उदास हो जाती हैं प्रधानमंत्री जी

हंसो
तुम्हें हंसना चाहिए
अपना नहीं ंतो
कम से कम
प्रधानमंत्री जी का खयाल कर

हंसो
इसलिए कि
तुम्हें इस मुल्क में रहना है।
 
चार

जिन सीढियों पर चढ़कर
वे बनते हैं तानाशाह
इतिहास में दर्ज होता है उनका नाम
वे ही सीढियाँ
ले जाती हैं उन्हें मौत तक

वे उतरते हैं
उस अतल गहराई में
जहाँ अंधेरे के सिवा
कोई साथ नहीं होता
कोई सुनने वाला नहीं होता उनका विलाप
वे करते हैं आत्म हत्या
या वहीं हो जाते हैं जमीन्दोज।

पाच

हड्डी
और लहू
और मांस
चिचोड़ती मादा
उतर रही है
सीढियाँ
आहिस्ता।आहिस्ता

कभी जनरल फ्रैंको
अपनी जवानी में
इन्हीं सीढियों से उतरा करते थे
पूरे शान के साथ
इसी तहखाने में
हिटलर
अपनी नयी।नयी योजनाओं मे
मशगूल हुआ करता था
कभी।

 छ

जिसने भी
जनरल डायर की आँखों से
देखा है इस शहर को
लगा है यह शहर
एक उजड़ा हुआ रेगिस्तान
सहारा की मरुभूमि

फिर भी कुछ लोग हैं
जो इस जमीन में भी
पानी की बात करते हैं
दरअसल, ये लोग
उनके वंशज हैं
जो जलियाँवाल बाग में
भून दिये गये थे।

 सात

वह जब देखता है
समूची दुनिया को
तोप की नली से देखता है

वह हरे भरे खेतों को देखता है
और खेत
युद्ध के मैदान में बदल जाते हैं
वह दिन को देखता है
वहाँ अंधेरे का सैलाब फैल जाता है
वह शहर को देखता है
वहाँ कर्फ्यू का सन्नाटा
या मौत का नगर बस जाता है
वह जीवन को देखता है
और देखते । देखते
लाशों का ढेर लग जाता है

वह जब देखता है
बच्चे अनाथ हो जाते हैं
औरतें विधवा हो जाती हैं
पीढियाँ गुम होने लगती हैं
आदमी से लेकर
मुल्क तक की आजादी
खतरे में पड़ती है
जबान जॉब पहनाये बैल की तरह
हाथ किसी ठूंठे पेड़ की तरह
दिमाग हजारों मन बर्फ की सिल्लियों में दबा
महसूस होता है

यह महसूस करना भी जुर्म है
वह चाहता है
लोग महसूस करें भी तो
हर जगह और अपने भीतर
सिर्फ उसके विराट अस्तित्व को

लेकिन वह जब देखता है
दिमाग की गरमी से
बर्फ पिघलता है
औरों का देखना भी शुरू होता है।