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तानाशाह / मंगलेश डबराल

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तानाशाहों को अपने पूर्वजों के जीवन का अध्ययन नहीं करना पड़ता। वे उनकी पुरानी तस्वीरों को जेब में नहीं रखते या उनके दिल का एक्स-रे नहीं देखते। यह स्वत:स्फूर्त तरीके से होता है कि हवा में बन्दूक की तरह उठे उनके हाथ या बँधी हुई मुठ्ठी के साथ पिस्तौल की नोक की तरह उठी हुई अँगुली से कुछ पुराने तानाशाहों की याद आ जाती है या एक काली गुफ़ा जैसा खुला हुआ उनका मुँह इतिहास में किसी ऐसे ही खुले हुए मुँह की नकल बन जाता है। वे अपनी आँखों में काफ़ी कोमलता और मासूमियत लाने की कोशिश करते हैं लेकिन क्रूरता एक झिल्ली को भेदती हुई बाहर आती है और इतिहास की सबसे क्रूर आँखों में तब्दील हो जाती है। तानाशाह मुस्कराते हैं, भाषण देते हैं और भरोसा दिलाने की कोशिश करते हैं कि वे मनुष्य है, लेकिन इस कोशिश में उनकी भंगिमाएँ जिन प्राणियों से मिलती-जुलती हैं वे मनुष्य नहीं होते। तानाशाह सुन्दर दिखने की कोशिश करते हैं, आकर्षक कपड़े पहनते हैं, बार-बार सज-धज बदलते हैं, लेकिन यह सब अन्तत: तानाशाहों का मेकअप बनकर रह जाता है।
इतिहास में कई बार तानाशाहों का अन्त हो चुका है, लेकिन इससे उन पर कोई फ़र्क नहीं पड़ता क्योंकि उन्हें लगता है वे पहली बार हुए हैं।