भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

तितली / नर्मदाप्रसाद खरे

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

रंग-बिरंगे पंख तुम्हारे, सबके मन को भाते हैं,
कलियाँ देख तुम्हें खुश होतीं, फूल देख मुसकाते हैं!

रंग-बिरंगे पंख तुम्हारे सबका मन ललचाते हैं,
तितली रानी, तितली रानी, यह कह सभी बुलाते हैं!

पास नहीं क्यों आती तितली, दूर-दूर क्यों रहती हो?
फूल-फूल के कानों में जा-जाकर क्या कहती हो?

सुंदर-सुंदर प्यारी तितली, आँखों को तुम भाती हो!
इतनी बात बता दो हमको, हाथ नहीं क्यों आती हो?

इस डाली से उस डाली पर, उड़-उड़ कर क्यों जाती हो?
फूल-फूल का रस लेती हो, हमसे क्यों शरमाती हो!