भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

तिरसा / रवि पुरोहित

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

जनपथ माथै
जन नीं दिखै
गुरू चेलां सूं
पढणो सीखै
कैङो जमानो आयो भाई
हाथी सस्ता
मूंगा दांत
चौडे-चौगानां बिकै !

राजघाट
फूलां नैं तरसै
जीव-जिलफ
रोटी पर बरसै
कैङो जमानो आयो भाई
पणघट अबै
मरै तिसायो
बाप मर्यां
बेटो मन हरसै !

संसद
वर, वर-वर नै धापी
सदाचार
बखाणै पापी
कैङो जमानो आयो भाई
काण-कायदो
चांद ईद रो
बेटो बाप नैं देवै थापी !


धायो,
म्हैं तो धायो भाई
खूणियां तांणी जोङूं हाथ,
पळ-पळ
मर-मर
कद लग जीऊं
थारो-म्हारो इत्तो ई साथ
मंजूर म्हनैं ई मरणो है पण
चावूं
जीवन पैलां भरल्यूँ बांथ ।