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तुझ लब की सिफ़त लाल-ओ-बदख़्शाँ सों कहूँगा / वली दक्कनी

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तुझ लब की सिफ़त लाल-ओ-बदख़्शाँ सों कहूँगा
जादू हैं तेरे नैन ग़ज़ालाँ सों कहूँगा

दी बादशही हक़ ने तुझे हुस्‍न नगर की
यो किश्‍वर-ए-ईराँ में सुलेमाँ सों कहूँगा

तारीफ़ तेरे क़द की अलिफ़वार सिरीजन
जा सर्व गुलिस्‍ताँ कूँ ख़ुशउलहां सो कहूँगा

मुझ पर न करो ज़ुल्‍म तुम ऐ लैला-ए ख़ूबाँ
मजनूँ हूँ तेरे ग़म कूँ बयाबाँ सों कहूँगा

देखा हूँ तुझे ख्‍व़ाब में ऐ माया-ए-ख़ूबी
इस ख्‍व़ाब को जा यूसुफ़-ए-किनआँ सों कहूँगा

जलता हूँ शब-ओ-रोज़ तिरे ग़म में ऐ साजन
ये सोज़ तिरा मिश्‍अल-ए-सोज़ाँ सों कहूँगा

यक नुक्‍त़ा तिरे सफ़हए-रुख़ पर नहीं बेजा
इस मुख कूँ तिरे सफ़हए-क़ुरआँ सों कहूँगा

बेसब्र न हो ऐ 'वली' इस दर्द सों हरगिज
जलता हूँ तिरे दर्द में दरमाँ सों कहूँगा