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तुम्हारी याद / महेन्द्र भटनागर

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बस, तुम्हारी याद मेरे साथ है !

आज यह बेहद पुरानी बात की
ध्यान में फिर बन रही तसवीर क्यों ?
आज फिर से उस विदा की रात-सा
आ रहा है नयन में यह नीर क्यों ?
सिर्फ़ जब उन्माद मेरे साथ है !

कह रही है हूक भर यह चातकी
‘प्रेम का यह पंथ है कितना कठिन,
विश्व बाधक देख पाता है नहीं
शेष रहती भूल जाने की जलन !’
बस, यही फ़रियाद मेरे साथ है !

पर, तुम्हारी याद जीवन-साध की
वह अमिट रेखा बनी सिन्दूर की ;
आज जिसके सामने किंचित् नहीं
प्राण को चिंता तुम्हारे दूर की,
देखने को चाँद मेरे साथ है !
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