भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

तुम्हारे उस पार / शशांक मिश्रा 'सफ़ीर'

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

हे प्राण,
जो तुम न होते तो
क्या होता तुम्हारे उस पार?
प्रश्न की सुई हर बार यहीं अटकती है,
एक गहन सन्नाटे के साथ।

हे प्राण,
तुम न होते तो गहन सन्नाटा होता
तुम्हारे उस पार।