भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

तुम ! / संजय शाण्डिल्य

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

तुम सच हो
या स्वप्न हो

हम कभी साथ थे भी
या साथ रहनेवाली बात
स्वप्न में देखी गई बात है

जो हो
मैं कुछ भी नहीं जानता

जानता हूँ बस इतना
कि हमने जो पल
साथ कहीं भी जिए हैं

इस जीवन के
अन्धकार में वे
जगमगाते दिए हैं !