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तुम ईश्वर नहीं / शक्ति बारैठ

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ढह गया ना देखो दम्भ का दुर्ग
धवस्त हो गया ना अभैद किला
तुम कुछ भी तो नहीं रहै ना अब
गर बचा है फिर भी कुछ, तो कहो
समय का चक्र है,
निरंतर चलेगा !
अब आकाशवाणियां नहीं होती
अब भविष्य नहीं होता
अब तुम खुदा: नहीं
अब तुम तब तक तुम हो
जब तक मान नहीं लेतै की
तुम कुछ भी नहीं हो।
हड्डियों पर चढीं मांस की परत
और नशों में दौडता लाल पानी
दस उंगलियाँ,
एक सिर और बदजात दिमाग
बस इतना ही।
तुम बीज नहीं हो
की पौधे बनों
फल लगै
और फिर कहो की हाँ में भूख मिटाता हूँ,
छायां दैता हूँ
आसरा भी।
तुम ईश्वर नहीं हो„
चुप करो
वरना दूर रहो।