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तुम कोई कैदी नही हो / आर्य भारत

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तुम कोई कैदी नही हो,
न मुकदमा न गवाही
न अदालत न ही कोई फैसला,
फिर क्यों तुम्हे
अपराधियों की भांति
करके बंद,लगा कर चौकसी ऊँचे दीवारों की
तुम्हारे हॉस्टल के गेट पर
लटका दिया है
लेट एंट्री का कोई थुलथुला ताला,

तुम्हारे ख्वाब के आकाश में
चमकने वाले ग्रह-नक्षत्रो को
तुम्हारे चन्द्रमा को,
बता कर अपहरणकर्ता
छत की चादर से तुम्हे महफूज आखिर कर दिया है,
तो क्या बस इसलिए की पास तेरे
सिनेमा से लेकर अखबार तक
सबमें दिखने वाली अप्सराओं की तरह,
उनुमक्त केश
मादक नयन
सुर्ख अधर
उभरे उरोज
लचकती कमर
प्रमत्त चाल
से बनी एक देह हैं,

या बस इसलिए की पास तेरे
सोने चांदी की बालियाँ,कंगन,खनकती चूड़ियाँ हैं
या कि शायद इसलिए कि पास तुमने,
कपास के खेतों से निकली
रुई के फाहों से निर्मित
श्वेत सैनेटरी पैड,ब्रा ब्लाउज
जैसा रहस्यमयी पोशाक रखा है,

तो फिर तुम छोड़ क्यों नही देती
निकल क्यों नही जाती
चूडियों के वृत्त से
पोशाकों के चित्र से
स्त्री के चरित्र से

क्यों नही किसी दिन
अपनी महिला संरक्षक के समक्ष
तोडकर चूड़ियाँ करती विधवा विलाप
उड़ा देती हवा में लहुलुहान सफेद कबूतर
खोल देती होस्टेल के सारे हुक
और दीवारों के सीनों पर लिख देती
अपने वक्ष का माप
आखिर देश भी 56 इंच के सीने से चला करता है