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तुम ना आए / शिवदेव शर्मा 'पथिक'

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आस जीवन भर
बिलखते रह गए,
पर तुम ना आए!
प्यार के मधुमय डगर पर
तुम न आए!

जा चुकी जाने न कितनी
साँझ आकर
याद में तेरी युगों से
है दृगों में मेघ छाए
किंतु निर्मम!
तुम न आए!

एक निर्मम के लिए ही,
सेज पलकों की बिछाकर,
प्यास युग- युग की जगाए,
जोहने को बाट केवल,
दीप भी कितने जलाए!
तुम न आए!

क्या कभी तुम आ सकोगे!
प्यार की पंकिल डगर पर?
झाँक लोगे इंदू बनकर,
कब सलोना गात अपना,
नयन-गंगा की लहर पर
रूप की मस्ती दबाए!
तुम न आए!

प्यास मिलने की जगी है,
मौन मेरी ही व्यथा से,
या तुम्हारी हीं प्रतीक्षा,
से विकल क्या रात रोई?
स्वर मिलाने को तुम्हीं से,
गीत भी कितने न गाए!
तुम न आए!
 
मैं कहूँँगा जिंदगी भर,
याद लेकर, आह लेकर
विश्व के भी रोकने पर,
जिंदगी में भूलकर भी,
हाय! निष्ठुर,
प्यार की संध्या न आए,
प्यास नैनों में जगाए,
क्योंकि सुन लो
प्यार मेरे!
तुम न आए!