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तुम में या मुझ में / अज्ञेय

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 तुम में या मुझ में या हमारे प्रणय-व्यवहार में, अभिजात कुछ भी नहीं है। केवल हम तीनों के मिलने से उत्पन्न हुई आत्म-बलिदान की कामना ही अभिजात है।
तुममें, या मुझ में, या हमारे प्रेम में ही, अजस्रता नहीं है। केवल हम तीनों के संघर्षण से उत्पन्न होने वाली पीड़ा ही अजस्र है।

दिल्ली जेल, 1 मार्च, 1933