भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

तुम / रश्मि रेखा

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

तुम मेरे बचपन की यादों की तरह
तुम अन्धेरें में दीवार पर जलते
 एक सौ वाट के दूधिया बल्ब की तरह
हज़ार-हज़ार परेशानियों के बीच
गाँव की सड़क पर उगी नरम दूब की तरह
इन दिनों अक्सर आते हो याद

अपनी जड़ो से उखड़े आदमी का दर्द लिए
इन दिनों संगीत में ही बजती है मेरी ख़ामोशी
"दुखवा मैं कसे कहूँ मोरी सजनी "
मैं गाना चाहती हूँ अपनी तरह
पर कैसे गा सकती हूँ
मै रोना चाहती हूँ अपने तरीके से
पर कैसे रो सकती हूँ

चमकते दाँतो की प्रदर्शनी के इस दौर में
मेरी मुस्कान पूस महीने की ओस की तरह
मेरी आँखों में ठहरी है मोनालिज़ा की तस्वीर

जीने और मरने की तमाम मुश्किलों के बीच
इन दिनों अक्सर आते हो याद
मोर्फीन के इंजेक्शन की तरह