भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
तू कृष्ण ही ठहरा तो सुदामा का भी कुछ कर / राजेंद्र नाथ 'रहबर'
Kavita Kosh से
तू कृष्ण ही ठहरा तो सुदामा का भी कुछ कर
काम आते हैं मुश्किल में फ़क़त यार पुराने
फाकों पे जब आ जाता है फ़नकार हमारा
बेच आता है बाजार में अखबार पुराने
देखा जो उन्हें एक सदी बाद तो 'रहबर '
छालों की तरह फूट पड़े प्यार पुराने