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तृण हरियाली / विनीता परमार

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शोध के रूप में, कुछ बीज डाले
प्रयोग के लिये, अपने ही बीजों में
डाला कुछ में शाकनाशी और कुछ में पानी
दो खरपात उगे,खूब फले फूले
अनुसंधान की सामग्री
फिर उस पर छिड़काव
रोम रोम में जहर डाला
पत्ते फूल सब गिरने लगे
तुम हमें तृण हरियाली समझते रहे
मेंरी नसों का हरा हरा कतरा बिख़रता रहा
मेंरी शाख सूखने लगी
तभी आँसुओं की बारिश ने
विष को धो डाला
नई पत्तियाँ निकलने लगी
मैं सिर्फ खरपात नही
औषध गुण मेरे भर देते
जख्मों के घाव
मानस के हृदय में करते रागों का संचार
तुम कब समझोगे मेंरे रसों का भाव
बस अब ना समझो शोध का प्रश्न
कर लो मुझे आत्मसात
मिट्टी के साथ नई ऊर्वरा
कर देगी सब हरा भरा...