भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

तेरा हम ने जिस को तलब-गार देखा / मीर 'सोज़'

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

तेरा हम ने जिस को तलब-गार देखा
उसे अपनी हस्ती से बे-ज़ार देखा

अदा ही हसरत में सब मर गए सच
तजल्ली को किस ने ब-तकरार देखा

तेरी आँख भर जिस ने तस्वीर देखी
वो तस्वीर सा नक़्श-ए-दीवार देखा

अजब कुछ ज़माने की है रस्म यारो
जो है काम का उसे को बे-कार देखा

व-लेकिन अचम्भा बड़ा मुझ को ये है
के टुक ‘सोज़’ का गर्म बाज़ार देखा