भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

तेरी सांसों की ख़ुश्बू से ख़िज़ाँ की रुत बदल जाए / महावीर शर्मा

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज



तेरी साँसों की ख़ुश्बू से ख़िज़ाँ की रुत बदल जाए,
जिधर को फैल जाएँ, आब-दीदा भी बहल जाए।

ज़माने को मुहब्बत की नज़र से देखने वाले,
किसी के प्यार की शमअ तिरे दिल में भी जल जाए।

मिरे तुम पास ना आना मिरा दिल मोम जैसा है,
तिरे सांसों की गरमी से कहीं ये दिल पिघल जाए।

कभी कोई किसी की ज़िन्दगी से प्यार ना छीने,
वो है किस काम का जिस फूल से ख़ूश्बू निकल जाए

तमन्ना है कि मिल जाए कोई टूटे हुए दिल को,
बनफ़्शी हाथों से छू ले, किसी का दिल बहल जाए।

ज़रा बैठो, ग़मे-दिल का ये अफ़साना अधूरा है,
तुम्हीं अंजाम लिख देना, मिरा गर दम निकल जाए।

मिरी आंखें जुदा करके मिरी तुर्बत पे रख देना,
नज़र भर देख लूं उसको, ये हसरत भी निकल जाए।