भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

दम्पति-प्रसंग / राजकमल चौधरी

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

पति कोड़ि रहल अछि, कोनो प्रकारेँ...
अपन नाकसँ
माटि परम पथराह
नहुए नहुए कोड़ि रहल अछि!
पति जोड़ि रहल अछि, मुदा घटाक’
अपन आँखिसँ
वंशावलि कारी चश्मा हटा-हटाक’...
पहिने दैत अछि भाग; तकर बाद गुणा!
की कयल जाय,
सौ से गामक अधुना जीवन अछि एहिना
मरल साप सन!
पति जोड़ि रहल अछि, मुदा, मात्र पत्नी
दैत अछि भाग...
पतिक गुणनफलकेँ कहैत अछि,
-हा हन्त, हमर दुर्भाग!
एही पापसँ सदिखन कनैत अछि;
अपन नोरसँ
गील भेल आटा सदिखन सनैत अछि
पत्नी!

(मिथिला मिहिर: 5.12.65)