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दयामयि स्वामिनि परम उदार / हनुमानप्रसाद पोद्दार

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दयामयि स्वामिनि परम उदार!
पद-किंकरि की किंकरि-किंकरि करौ मोय स्वीकार॥
दूर करौं निकुंज-मग-कंटक-कुस सब सदा बुहार।
स्वच्छ करौं तव पगतरि पावन, धूर-धार सब झार॥
देखौं दूरहि तैं तव प्रियतम संग सुललित बिहार।
नित्य निहारत रहौं, मिलै कछु सेवा की सनकार॥
पद-सेवन कौ बढ़ै चाव नित काल अनंत अपार।
अर्पित रहै सदा सेवा में अंग-‌अंग अनिवार॥
कबहुँ न जगै दूसरी तृस्ना, कबहुँ न अन्य बिचार।
रहै न कितहूँ कछु ’मेरौपन’, ’अहंकार’ होय छार॥
होयँ तुम्हारे मन के ही, बस, मेरे सब यौहार।
बनौ रहै नित तुहरौ ही सुख मेरौ प्रानाधार॥